मोक्ष प्रदान करने वाली : मोक्षदा एकादशी
मोक्षदा एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मार्गशीर्ष महीने (नवंबर-दिसंबर) के शुक्ल पक्ष की एकादशी (11वें दिन) को मनाया जाता है। “मोक्षदा” का अर्थ है “मोक्ष प्रदान करने वाली।” माना जाता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है और अपने पूर्वजों की आत्माओं को सांसारिक बंधनों से मुक्ति दिला सकता है।
मोक्षदा एकादशी की मुख्य विशेषताएं:
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आध्यात्मिक महत्व:
- यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु के कृष्ण रूप की पूजा के लिए समर्पित है।
- भक्त इस व्रत को पापों की क्षमा के लिए और अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए रखते हैं।
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भगवद गीता से संबंध:
- मोक्षदा एकादशी को वह दिन भी माना जाता है जब भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इसे गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
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व्रत विधि:
- भक्त सूर्योदय से व्रत प्रारंभ करते हैं और अनाज, दालें और कुछ अन्य खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करते।
- फल, दूध और हल्का शाकाहारी भोजन उन लोगों के लिए अनुमति है जो कठोर व्रत नहीं कर सकते।
- अगले दिन पूजा करने और विशेष भोजन ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
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पूजा और प्रार्थना:
- भक्त भगवान विष्णु को फूल, धूप और भोग अर्पित करते हैं।
- विष्णु मंत्रों का जप और भगवद गीता का पाठ या श्रवण करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
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दान और अच्छे कर्म:
- इस दिन गरीबों को भोजन कराना या मंदिरों में दान करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
मोक्षदा एकादशी भक्ति, आत्ममंथन और आध्यात्मिक विकास का दिन है, जो मोक्ष और ईश्वर की कृपा के मार्ग पर जोर देती है |
मोक्षदा एकादशी का व्रत बेहद मंगलकारी माना जाता है। इस दिन भक्त विष्णु जी की पूजा करते हैं। इस दिन का व्रत रखने से घर में शुभता आती है। साथ ही माता लक्ष्मी खुश होती हैं। वहीं इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे व्रत का पूरा फल मिलता है। इस साल यह (Mokshada Ekadashi 2024) 11 दिसंबर यानी आज मनाई जा रही है।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा:
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार द्वापर युग की बात है।
महाराज युधिष्ठिर ने कहा- हे भगवन! आप तीनों लोकों के स्वामी, सबको सुख देने वाले और जगत के पति हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे देव! आप सबके हितैषी हैं अतः मेरे संशय को दूर कर मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष एकादशी का क्या नाम है?
उस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है और उसकी क्या विधि है? कृपया मुझे बताएं। भक्त वत्सल भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि धर्मराज, तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेक पार्यों को नष्ट करने वाली है। इसका नाम मोक्षदा एकादशी है।
इस दिन दामोदर भगवान की धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। अब इस विषय में मैं एक पुराणों की कथा कहता हूं। गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरक में हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
प्रातः वह विद्वान ब्राह्मणों के पास गया और अपना स्वप्न सुनाया। कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट उठाते देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि है पुत्र मैं नरक में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब से मैंने ये वचन सुने हैं तब से मैं बहुत बेचैन हूं। चित्त में बड़ी अशांति हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्वी, हाथी, घोड़े आदि में कुछ भी सुख प्रतीत नहीं होता। क्या करूं?
राजा ने कहा- हे ब्राह्मण देवताओं! इस दुःख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है, वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरूर करेंगे।
ऐसा सुनकर राजा मुनि के आश्रम पर गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशल पूछी। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे च्ति में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजना मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रशिदी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया। उसी पापकर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा।
तब राजा ने कहा इसका कोई उपाय बताइए। मुनि बोले- हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहने अनुसार कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। इसके उपवास का पुण्य उसने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर स्वर्ग चले गए।
मोक्षदा एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष में आता है। इस व्रत को करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसकी कथा सुनने या पढ़ने से वायपेय यज्ञ के समान फल मिलता है। यह व्रत चिंतामणि की तरह मनोकामनाएं पूरी करता है।
कथा का संदेश
यह कथा हमें सिखाती है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत न केवल आत्मा की शुद्धि और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति के लिए भी प्रभावी है। इस दिन व्रत और भगवान विष्णु की आराधना करने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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