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शीतला पूजा: माता शीतला की कृपा और स्वास्थ्य का पर्व

शीतला पूजा

शीतला पूजा

शीतला पूजा: माता शीतला की कृपा और स्वास्थ्य का पर्व

बसोड़ा 2025 :

भारत में शीतला पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो माता शीतला को समर्पित है। माता शीतला को स्वास्थ्य, उपचार और रोगों से सुरक्षा की देवी माना जाता है, खासकर चेचक, चिकनपॉक्स और गर्मी से संबंधित बीमारियों से। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है और श्रद्धा व परंपराओं का अनूठा संगम है।

शीतला पूजा

शीतला पूजा कब मनाई जाती है?

शीतला पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में पड़ती है। इसे शीतला अष्टमी या बसोड़ा कहते हैं। यह होली के लगभग आठ दिन बाद आती है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में इसे होली के बाद पहले सोमवार या शुक्रवार को भी मनाया जाता है। राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में यह पर्व विशेष रूप से लोकप्रिय है।

शीतला माता का महत्व

“शीतला” नाम संस्कृत के “शीतल” शब्द से आया है, जिसका अर्थ है “ठंडक” या “शांति।” माता शीतला को मां दुर्गा या पार्वती का अवतार माना जाता है। गर्मी की शुरुआत में यह पूजा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मौसम में रोगों का खतरा बढ़ जाता है। प्राचीन काल में जब चेचक जैसी बीमारियां फैलती थीं, तब लोग माता शीतला से प्रार्थना करते थे। आज भी यह पर्व स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली का प्रतीक है।

पूजा की विधि

शीतला पूजा की कुछ खास परंपराएं हैं:

  1. तैयारी: सुबह सूर्योदय से पहले स्नान किया जाता है, अक्सर ठंडे पानी से। इस दिन ताजा भोजन नहीं बनाया जाता; पिछले दिन तैयार भोजन ही चढ़ाया जाता है।
  2. पूजा स्थल: माता शीतला की मूर्ति या चित्र को स्थापित किया जाता है। उन्हें गधे पर सवार, झाड़ू, सूप और नीम के पत्तों के साथ दर्शाया जाता है।
  3. भोग: बासी भोजन जैसे चावल, दही, रबड़ी, हलवा और फल (जैसे केला) चढ़ाए जाते हैं। इसके अलावा सिंदूर, हल्दी, मेहंदी, फूल और पान भी अर्पित किए जाते हैं।
  4. उपवास और प्रार्थना: कई भक्त आंशिक या पूर्ण उपवास रखते हैं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं। नीम के पत्तों का प्रयोग भी आम है।
  5. मंदिर दर्शन: लोग शीतला माता के मंदिरों में जाते हैं, जैसे हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित प्रसिद्ध शीतला देवी मंदिर।

सांस्कृतिक परंपराएं

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पौराणिक कथा

स्कंद पुराण के अनुसार, माता शीतला मानवता को रोगों से बचाने के लिए अवतरित हुई थीं। वह भगवान शिव और पार्वती से जुड़ी हैं और शक्ति का प्रतीक हैं। उनकी कृपा से लोग कठिनाइयों से उबरते हैं।

आधुनिक प्रासंगिकता

हालांकि चेचक अब समाप्त हो चुकी है, शीतला पूजा आज भी स्वास्थ्य और सामुदायिक एकता का प्रतीक बनी हुई है। यह परिवारों को एकजुट होने और सांस्कृतिक मूल्यों को संजोने का अवसर देती है।

शीतला पूजा हमारे उत्तर भारत के प्रसिद्द तथा महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता हे | वैसे तो इस त्यौहार को होली के बाद अच्छा वार देख कर मन लिया जाता है इसीलिए यह पूजा अलग अलग जगह अलग अलग दिन की जाती है | और अगर कोई बीच में न कर पाए तो होली से सातवे या आठवे दिन इस पूजा को किया जाता है |

शीतला पूजा हमें यह सिखाती है कि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है। माता शीतला की कृपा से हर घर में सुख और शांति बनी रहे!

 

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