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    “होला अष्टक: होली से पहले के आठ शुभ-अशुभ दिन और उनकी धार्मिक मान्यता”

    होला अष्टक: होली से पहले के आठ शुभ-अशुभ दिन

    परिचय

    रंगों के त्योहार होली से पहले, एक महत्वपूर्ण समय जिसे होला अष्टक कहा जाता है, प्रारंभ होता है। यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर पूर्णिमा (होलीका दहन) तक आठ दिनों तक चलता है।

    हिन्दू धर्म में इसे नए कार्यों के लिए अशुभ माना जाता है, लेकिन यह आध्यात्मिक शुद्धि और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ समय होता है। इस लेख में हम होला अष्टक की पौराणिक कथा, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व को समझेंगे।

    होला अष्टक की पौराणिक मान्यता

    होला अष्टक की कहानी भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है।

    प्रह्लाद और होलिका की कथा

    1. भक्त प्रह्लाद की भक्ति – प्रह्लाद, राक्षस राजा हिरण्यकशिपु का पुत्र था, लेकिन वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात उसके पिता को स्वीकार नहीं थी।
    2. आठ दिनों की यातना – होला अष्टक के दौरान, हिरण्यकशिपु ने आठ दिनों तक प्रह्लाद को अनेक कठोर दंड दिए, ताकि वह भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दे।
    3. होलिका की चाल – फाल्गुन पूर्णिमा के दिन, हिरण्यकशिपु की बहन होलिका (जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था) ने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठने की योजना बनाई
    4. सत्य की विजय – भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित रहा
    5. अधर्म का अंत – बाद में, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का वध किया, जिससे यह साबित हुआ कि भक्ति और सत्य की हमेशा जीत होती है

    इसलिए होला अष्टक को धैर्य, भक्ति और परीक्षा का समय माना जाता है, जो अंततः सकारात्मक परिवर्तन और विजय की ओर ले जाता है।


    होला अष्टक को अशुभ क्यों माना जाता है?

    हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, होला अष्टक के दौरान ग्रहों की स्थिति में बड़े परिवर्तन होते हैं, जिससे यह समय नए कार्यों के लिए प्रतिकूल हो जाता है। इस दौरान निम्नलिखित कार्य नहीं किए जाते:

    • शादियाँ और सगाई
    • नया व्यापार शुरू करना
    • गृह प्रवेश (नई जगह में शिफ्ट होना)
    • महत्वपूर्ण निवेश या आर्थिक लेन-देन

    ग्रहों की अस्थिर स्थिति के कारण नए कार्यों में बाधाएं और कठिनाइयाँ आ सकती हैं।


    होला अष्टक के दौरान किए जाने वाले धार्मिक कार्य

    हालांकि यह समय नए कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए अत्यंत शुभ होता है। इस दौरान लोग:

    • व्रत और ध्यान करते हैं – कई लोग भगवान विष्णु और नरसिंह भगवान की पूजा करते हैं।
    • दान-पुण्य करते हैं – इस समय गरीबों को अन्न, वस्त्र, और जरूरत की चीजें दान करने से विशेष पुण्य मिलता है।
    • मंदिर दर्शन करते हैंभगवान विष्णु, श्रीकृष्ण और नरसिंह मंदिरों में पूजा करने से विशेष लाभ होता है।
    • होलीका दहन की तैयारी होती है – इस दौरान लोग होलिका दहन की लकड़ियाँ और अन्य सामग्री एकत्रित करते हैं, जो असत्य और अहंकार के विनाश का प्रतीक है।

    ज्योतिषीय महत्व

    ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, होला अष्टक के दौरान ग्रहों की स्थिति में प्रमुख परिवर्तन होते हैं:

    • बुध, गुरु और शनि का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे लोगों में मनोग्रस्तता और भ्रम की स्थिति बन सकती है।
    • नए कार्यों में देरी और रुकावटें आ सकती हैं।
    • पूजा-पाठ और मंत्र जाप से नकारात्मक प्रभाव कम किए जा सकते हैं

    इसलिए, इस समय भक्ति, तप और ध्यान करने से मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है


    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होला अष्टक का महत्व

    यदि वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो होला अष्टक का समय मौसम के परिवर्तन का होता है:

    • सर्दी से गर्मी में बदलाव के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव होता है
    • इस दौरान सर्दी-जुकाम और एलर्जी जैसी बीमारियाँ अधिक फैलती हैं
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव – होला अष्टक के बाद होली का रंगों से भरा उत्सव लोगों में नई ऊर्जा और खुशी भरता है

    इसलिए, होला अष्टक के दौरान स्वास्थ्य का ध्यान रखना, नियमित उपवास और सात्विक आहार अपनाना लाभदायक होता है


    निष्कर्ष

    होला अष्टक भले ही नए कार्यों के लिए अशुभ माना जाता हो, लेकिन यह आध्यात्मिक साधना, भक्ति और आत्मविश्लेषण का श्रेष्ठ समय है। यह हमें सिखाता है कि धैर्य और भक्ति की परीक्षा के बाद ही सफलता मिलती है, जैसे प्रह्लाद की भक्ति की जीत हुई थी।

    होली के रंगों के इस उल्लासमय पर्व से पहले, हमें होला अष्टक के दौरान आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने पर ध्यान देना चाहिए


    क्या आप होला अष्टक के दौरान विशेष पूजा करते हैं? कमेंट में अपने विचार साझा करें! 😊

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