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    "माँ दुर्गा सिंह पर सवार, शस्त्र और कमल लिए, दीयों और भक्तों से घिरी हुई, मंदिर और तारों भरे आकाश के साथ।""नवरात्रि में दुर्गा चालीसा के साथ माँ की महिमा।"

    दुर्गा चालीसा: शक्ति और शांति का मंत्र

    दुर्गा चालीसा केवल एक भजन नहीं है—यह माँ दुर्गा से भक्तों को जोड़ने वाला एक आध्यात्मिक सेतु है, जो शक्ति और करुणा की प्रतीक हैं। यह 40 छंदों का यह प्रार्थनागीत, जो साधारण अवधी भाषा में लिखा गया है, हिंदू भक्ति का एक प्रिय हिस्सा है, खासकर नवरात्रि के दौरान, जब हर तरफ उनकी स्तुति गूंजती है। लेकिन यह चालीसा इतना खास क्यों है? आइए इसके सार को जानें और इसका पूरा पाठ आपके साथ साझा करें।

    "माँ दुर्गा की सुनहरी मूर्ति सिंह पर सवार, त्रिशूल और खड्ग के साथ, दीयों और माला से सजे मंदिर के सामने, नारंगी आकाश के साथ।
                                                                                 “दुर्गा चालीसा के साथ माँ की शक्ति का आह्वान।”

    दुर्गा चालीसा पर एक नजर

    सदियों पहले रचित, दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा के दिव्य रूपों और कार्यों की प्रशंसा में लिखा गया एक काव्यात्मक भजन है। “चालीसा” का अर्थ है “चालीस,” जो इसके 40 दोहों को दर्शाता है, जो उनके महिषासुर जैसे राक्षसों पर विजय और भक्तों के प्रति उनके असीम प्रेम का गुणगान करते हैं। इसे श्रद्धा के साथ पढ़ने से सुरक्षा, शांति और समृद्धि मिलती है। घरों से लेकर मंदिरों तक, इसके लयबद्ध छंद दिलों को साहस से भर देते हैं, जिससे यह एक शाश्वत परंपरा बन गई है।

    दुर्गा चालीसा का पूरा पाठ हिंदी में

    यहाँ आपके द्वारा प्रदान किया गया सही और पूर्ण पाठ है, जिसे पारंपरिक रूप से गाया या पढ़ा जाता है:

    श्री दुर्गा चालीसा

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
    नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

    निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
    तिहूं लोक फैली उजियारी॥

    शशि ललाट मुख महाविशाला।
    नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

    रूप मातु को अधिक सुहावे।
    दरश करत जन अति सुख पावे॥

    तुम संसार शक्ति लै कीना।
    पालन हेतु अन्न धन दीना॥

    अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
    तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

    प्रलयकाल सब नाशन हारी।
    तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
    ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

    रूप सरस्वती को तुम धारा।
    दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

    धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
    परगट भई फाड़कर खम्बा॥

    रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
    हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

    लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
    श्री नारायण अंग समाहीं॥

    क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
    दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
    महिमा अमित न जात बखानी॥

    मातंगी अरु धूमावति माता।
    भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

    श्री भैरव तारा जग तारिणी।
    छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

    केहरि वाहन सोह भवानी।
    लांगुर वीर चलत अगवानी॥

    कर में खप्पर खड्ग विराजै।
    जाको देख काल डर भाजै॥

    सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
    जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

    नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
    तिहुंलोक में डंका बाजत॥

    शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
    रक्तबीज शंखन संहारे॥

    महिषासुर नृप अति अभिमानी।
    जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

    रूप कराल कालिका धारा।
    सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

    परी गाढ़ संतन पर जब जब।
    भई सहाय मातु तुम तब तब॥

    अमरपुरी अरु बासव लोका।
    तब महिमा सब रहें अशोका॥

    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
    तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

    प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
    दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
    जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
    योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

    शंकर आचारज तप कीनो।
    काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
    काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

    शक्ति रूप का मरम न पायो।
    शक्ति गई तब मन पछितायो॥

    शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
    जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
    दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

    मोको मातु कष्ट अति घेरो।
    तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

    आशा तृष्णा निपट सतावें।
    रिपू मुरख मौही डरपावे॥

    शत्रु नाश कीजै महारानी।
    सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

    करो कृपा हे मातु दयाला।
    ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

    जब लगि जिऊं दया फल पाऊं।
    तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

    दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
    सब सुख भोग परमपद पावै॥

    देवीदास शरण निज जानी।
    करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

    ॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

    "एक भक्त पूजा स्थल पर दुर्गा चालीसा की पुस्तक लिए बैठा है, जलते दीये और माँ दुर्गा की मूर्ति के साथ, फूलों से सजा हुआ।"
                                                                    “श्रद्धा के साथ चालीसा का पाठ शांति लाता है।”

    इसका महत्व

    इसकी धुन से परे, चालीसा का गहरा अर्थ है। यह मुश्किल समय में शक्ति की पुकार है और दुर्गा की ममता की याद दिलाती है। चाहे आप किसी चुनौती का सामना कर रहे हों या मन की शांति चाहते हों, इसे पढ़ना—खासकर नवरात्रि में—ऐसा लगता है जैसे ईश्वर से बातचीत हो रही हो। भक्त मानते हैं कि यह नकारात्मकता को दूर करता है और आत्मा को सकारात्मकता से जोड़ता है।

    इसका उपयोग कैसे करें

    इसे पढ़ने के लिए विद्वान होने की जरूरत नहीं—बस सच्चा मन चाहिए। इसे जोर से गाएं, ऑनलाइन धुन के साथ चलाएं, या चुपचाप पढ़ें। सुबह या शाम, एक जलते दीये के साथ, यह चमत्कार करता है। कई लोग नवरात्रि में उपवास के साथ इसे जोड़ते हैं ताकि भक्ति और गहरी हो।

    "माँ दुर्गा महिषासुर का वध करती हुई, दस हाथों में शस्त्र लिए, तेजस्वी चेहरा, लाल-सुनहरे पृष्ठभूमि के साथ।"
                                                                               “दुर्गा चालीसा में गाई गई माँ की विजय।”

    अंतिम विचार

    दुर्गा चालीसा सिर्फ शब्द नहीं—यह विश्वास की एक लहर है। चाहे आप साहस, स्पष्टता या जुड़ाव चाहते हों, इसके छंद माँ दुर्गा का एक शाश्वत आलिंगन देते हैं। इसे आजमाएं, और फर्क महसूस करें।

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    By TEENA S

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    One thought on ““दुर्गा चालीसा: शक्ति और शांति का मंत्र””

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