Wed. Jul 30th, 2025
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    Akshaya tritya: Samriddhi aur Aashirvad ka pawan parv

    अक्षय तृतीया 2025: समृद्धि और आशीर्वाद का पावन पर्व

    जैसे ही वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि नजदीक आ रही है, भारत भर में अक्षय तृतीया की तैयारियां जोरों पर हैं। यह पवित्र पर्व, जो 30 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा, न केवल हिंदुओं बल्कि जैन समुदाय के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह दिन समृद्धि, सौभाग्य और नए शुरूआतों का प्रतीक है, और इसे ‘अक्षय’ यानी ‘कभी न खत्म होने वाला’ माना जाता है। इस साल यह पर्व और भी खास है, क्योंकि यह बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में पड़ रहा है, जो इसे और शुभ बनाता है।

     

    भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियों की पूजा करते हुए एक पारंपरिक पूजा स्थल।
                                                                        अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी-विष्णु की पूजा।

    अक्षय तृतीया 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

    अक्षय तृतीया 2025 का उत्सव 30 अप्रैल को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि 29 अप्रैल 2025 को शाम 5:31 बजे शुरू होगी और 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:12 बजे समाप्त होगी। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 5:40 बजे से दोपहर 12:18 बजे तक रहेगा, जो लगभग 6 घंटे 18 मिनट का होगा।

    खास बात: इस साल सूर्य मेष राशि में उच्च और चंद्रमा वृषभ राशि में होंगे। रोहिणी नक्षत्र के साथ बुधवार का संयोग इसे धन-संपदा और आध्यात्मिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ बनाता है।

    अक्षय तृतीया का इतिहास और महत्व

    अक्षय तृतीया का इतिहास पौराणिक और आध्यात्मिक घटनाओं से भरा हुआ है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से गहराई से जुड़ा है। मान्यता है कि इस दिन किए गए कार्यों का फल कभी नष्ट नहीं होता। पौराणिक कथाओं के अनुसार:

    • त्रेतायुग का प्रारंभ: अक्षय तृतीया को त्रेतायुग की शुरुआत माना जाता है।
    • गंगा का अवतरण: माना जाता है कि इस दिन गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई थी।
    • महाभारत की रचना: ऋषि वेदव्यास ने इस दिन भगवान गणेश को महाभारत सुनाना शुरू किया था।
    • अक्षय पात्र: भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को अक्षय पात्र प्रदान किया, जो कभी खाली नहीं होता था।
    • कृष्ण-सुदामा की मित्रता: सुदामा ने इस दिन श्रीकृष्ण को सादगी भेंट चढ़ाई, जिसके बदले उन्हें अपार धन-समृद्धि प्राप्त हुई।
    • परशुराम जयंती: भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का जन्म भी इसी दिन हुआ था।

    जैन धर्म में, यह पर्व प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के उपवास समापन से जुड़ा है। हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का रस पिलाकर उनका वर्षभर का उपवास तोड़ा था। इसलिए जैन समुदाय इस दिन दान और उपवास को विशेष महत्व देता है।

    “अक्षय तृतीया वह दिन है जब आप जो बोते हैं, वह कभी नष्ट नहीं होता। यह दान, पूजा और नए शुरूआतों का समय है,” 

    अक्षय तृतीया पर गंगोत्री मंदिर का उद्घाटन।
                                                                         अक्षय तृतीया पर चार धाम यात्रा की शुरुआत।

    अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?

    अक्षय तृतीया को समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। यह दिन इसलिए खास है क्योंकि:

    • खगोलीय संयोग: सूर्य और चंद्रमा इस दिन अपनी सर्वोच्च स्थिति में होते हैं, जिससे यह दिन स्वाभाविक रूप से शुभ हो जाता है।
    • नई शुरुआत: इस दिन शुरू किए गए कार्य, जैसे व्यवसाय, विवाह, या निवेश, फलदायी माने जाते हैं।
    • धन-समृद्धि: माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
    • आध्यात्मिक महत्व: यह दिन दान, तप और पूजा के लिए आदर्श है, जो अक्षय पुण्य प्रदान करता है।

    अक्षय तृतीया के रीति-रिवाज

    इस दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं और विभिन्न रीति-रिवाज अपनाते हैं:

    1. पूजा-अर्चना: भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की पूजा की जाती है। तुलसी, चंदन, घी के दीप, मिठाई, जौ, और तिल अर्पित किए जाते हैं। लक्ष्मी सहस्रनाम या विष्णु सहस्रनाम का पाठ विशेष फलदायी है।
    2. सोने-चांदी की खरीदारी: सोना, चांदी या अन्य कीमती वस्तुएं खरीदना इस दिन शुभ माना जाता है। लोग मानते हैं कि इस दिन खरीदा गया सामान हमेशा समृद्धि लाता है।
    3. दान-पुण्य: गरीबों को भोजन, वस्त्र, और धन दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। जौ, गेहूं, चावल, दही और दूध से बनी वस्तुएं दान की जाती हैं।
    4. उपवास: हिंदू भगवान विष्णु के लिए उपवास रखते हैं, जबकि जैन गन्ने के रस से उपवास तोड़ते हैं।
    5. नए कार्य: व्यवसाय शुरू करना, गृह प्रवेश, या शादी जैसे कार्य इस दिन किए जाते हैं।

     

     

    अक्षय तृतीया पर बच्चों को भोजन और किताबें दान करता व्यक्ति।
                                                                     अक्षय तृतीया पर दान के माध्यम से पुण्य

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    क्षेत्रीय रीति-रिवाज भी इस पर्व को और रंगीन बनाते हैं:

    • ओड Worshipping Lord Vishnu and Goddess Lakshmi during Akshaya Tritiya puja.ish रथ यात्रा के लिए रथ निर्माण शुरू होता है।
    • उत्तर प्रदेश: वृंदावन में बांके बिहारी के चरण दर्शन होते हैं।
    • महाराष्ट्र: महिलाएं हल्दी-कुमकुम का आदान-प्रदान करती हैं।
    • बंगाल: नए हिसाब-किताब (हलखाता) शुरू किए जाते हैं।
    • राजस्थान: पतंगबाजी का आयोजन होता है।

    इस साल की खासियत

    2025 में अक्षय तृतीया का महत्व और बढ़ गया है, क्योंकि यह रोहिणी नक्षत्र और बुधवार के संयोग में पड़ रहा है। यह संयोग धन-संपदा, आध्यात्मिक उन्नति और नए कार्यों के लिए विशेष रूप से शुभ है। इसके अलावा, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर इस दिन खुलेंगे, जिससे चार धाम यात्रा की शुरुआत होगी।

    लोगों की भावनाएं

    दिल्ली की गृहिणी शालिनी गुप्ता कहती हैं, “हर साल अक्षय तृतीया पर हम माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं और थोड़ा सोना खरीदते हैं। यह हमारे लिए समृद्धि और खुशी का प्रतीक है। इस बार हम बच्चों के लिए किताबें भी दान करेंगे।” वहीं, मुंबई के व्यवसायी राकेश मेहता ने बताया, “मैं इस दिन अपने नए स्टोर का उद्घाटन करने जा रहा हूं। यह दिन मेरे लिए बहुत शुभ है।”

    कैसे मनाएं अक्षय तृतीया?

    अक्षय तृतीया को और खास बनाने के लिए आप ये कर सकते हैं:

    • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और घर को साफ-सजाएं।
    • माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें।
    • सोने, चांदी या तंजौर पेंटिंग जैसी शुभ वस्तुएं खरीदें।
    • गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
    • नए कार्य शुरू करें या निवेश करें।
    अक्षय तृतीया पर आभूषण दुकान में सोने के गहने खरीदता परिवार।
                                                                     अक्षय तृतीया पर समृद्धि के लिए सोने की खरीदारी।

    यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची समृद्धि दान, सेवा और आस्था में है। तो इस अक्षय तृतीया, अपने दिल को उदार बनाएं और समृद्धि के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाएं।

     

    By TEENA S

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